मैं एक आत्मा हूँ।
देह से न्यारी, एक शुद्ध पवित्र शक्ति हूँ।
मैं आत्मा ज्योति बिंदु स्वरूप हूँ — एक चमकता हुआ दिव्य सितारा।
मैं आत्मा पवित्र स्वरूप हूँ।
पवित्रता मुझ आत्मा का निजी गुण है।
मेरे संस्कार भी अति पवित्र हैं।
पवित्रता ही मेरा स्वधर्म है।
मैं आत्मा, पवित्रता के सागर शिवबाबा की संतान हूँ।
मेरे पिता परमात्मा में पवित्रता का अखूट ख़ज़ाना है — और मैं आत्मा उस ख़ज़ाने की अधिकारी हूँ।
मुझे अब स्मृति आई है कि जब मैं परमधाम में शिवबाबा के पास थी, तब मैं संपूर्ण पवित्र थी।
वहाँ से जब मैं इस सृष्टि पर अवतरित हुई, तब भी मैं उसी संपूर्ण पवित्र स्वरूप में आई थी।
मैंने देवत्मा के रूप में इस धरा पर जन्म लिया था।
मेरा किसी से भी लगाव नहीं था — न देह में, न देह के संबंधों में कोई मोह।
मैं आत्मा अति पवित्र थी।
परन्तु समय के साथ, मेरा देह के प्रति आकर्षण बढ़ता गया और पवित्रता की शक्ति क्षीण होती गई।
अब मुझ आत्मा को फिर से पावन बनाने के लिए स्वयं भगवान आए हैं।
वे मुझे पावन बनाकर वापस परमधाम ले जाएंगे —
जहाँ से मैं सतयुगी देवत्मा के रूप में पुनः इस धरती पर जन्म लूँगी।
मैंने भगवान से प्रतिज्ञा की है —
कि मैं आत्मा पवित्र अवश्य बनूँगी।
मेरे पवित्र दिन अब आरंभ हो चुके हैं।
पवित्रता के सागर शिवबाबा को याद कर, मैं स्वयं में पवित्रता का अनुभव कर रही हूँ।
मैंने भगवान को अपना साथी बनाया है।
इस जग को पावन बनाने का बीड़ा उठाया है।
मुझे प्रकृति को भी शुद्ध करना है,
सर्व आत्माओं को पवित्रता के प्रकंपन देने हैं।
अब मुझे इस महानतम ज़िम्मेदारी का आभास हो चुका है।
मैं आत्मा, इस जगत की आधारमूर्ति हूँ।
मैं पवित्रता का अवतार हूँ।
मेरी पवित्रता की ज्योति जग का अंधकार मिटाएगी,
और अनेक आत्माओं को पवित्र बनने की राह दिखाएगी।
तब अपवित्रता, दुख और अशांति सदा के लिए समाप्त हो जाएँगे।
पवित्रता कितनी महान है!
यह केवल मेरे लिए नहीं, अपितु सारे संसार के लिए है।
मुझे इस पवित्रता की शक्ति स्वयं में निरंतर बढ़ानी है —
क्योंकि आज सारे विश्व की नज़र मुझ आत्मा पर है।
देखो!
प्रकृति भी पुकार रही है,
स्वयं भगवान मुझ आत्मा का श्रृंगार कर रहे हैं।
उनकी पवित्र दृष्टि मुझ आत्मा पर पड़ रही है।
उस दिव्यता में नहाकर मैं आत्मा पूर्ण पवित्र बनती जा रही हूँ।
इस पावन प्रकाश में:
मेरे जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो रहे हैं,
मेरे शरीर का हर अंग पवित्रता से भर रहा है।
मेरी एक-एक कर्मेंद्रिय शांत, शीतल, और सुगंधित होती जा रही है।
मेरा संपूर्ण शरीर पवित्रता के तेज से प्रकाशित हो रहा है।
अब मैं फरिश्ता स्वरूप में हूँ।
भृकुटि के मध्य एक दिव्य सितारे की तरह चमक रही हूँ।
मैं एक प्रकाशमय फरिश्ता हूँ।
बापदादा वतन से मेरा आवाहन कर रहे हैं।
मैं उड़ती हुई वतन में प्रवेश कर रही हूँ —
बापदादा की गोद में समा रही हूँ।
वे मुझे पवित्रता की शक्ति से भरपूर कर रहे हैं।
शिवबाबा, परम पवित्र दिव्य सितारा, मुझे अपनी ओर खींच रहे हैं।
उनकी पवित्र किरणें दूर-दूर तक फैल रही हैं,
और मैं आत्मा उन किरणों में समा रही हूँ।
अहा! यह अनुभव कितना सुंदर, कितना दिव्य है!
पवित्रता की शक्ति मुझे अति श्रेष्ठ बना रही है।
अब मुझे यह शक्ति केवल अनुभव नहीं करनी,
बल्कि दृष्टि, वृत्ति और कृति से व्यक्त भी करनी है।
तभी यह जीवन सार्थक होगा, और सबका कल्याण होगा।
मानव, देव बन जाएगा।
और यह सृष्टि, स्वर्ग बन जाएगी।
ॐ शांति।











