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अपने श्रेष्ठ भाग्य को महसूस करें
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अपने श्रेष्ठ भाग्य को महसूस करें

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जब कोई पुरानी बात आपको छोटा बना दे — तो याद दिलाओ, मैं वह आत्मा हूँ जिसे भगवान ने अपने साथी के रूप में चुना और वरदान दिए

ॐ शांति।

हे आत्मन, तुम क्या सोच रहे हो?

क्या तुम जानते हो —

तुम्हारे जैसा भाग्यवान और कोई नहीं है?

ज़रा अपने दिव्य चक्षु तो खोलकर देखो।

तुम्हारे भाग्य का सितारा जीवन गगन में चमक रहा है।

तुम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हो।

तुम्हें तो स्वयं भगवान ने अपना बच्चा बनाया है।

उसकी निहाल करने वाली नज़र तुम पर पड़ी है।

उसने तुम्हें दिल से कहा है:

"बच्चे, तुम मेरे हो और मैं तुम्हारा हूँ।"

तो अपने भाग्य को देखकर मुस्कुराओ।

स्वयं भगवान तुम्हारा हो गया है।

अब जितना चाहो, अपना भाग्य बना लो।

स्वयं भाग्यविधाता परमात्मा तुम पर राज़ी हुआ है।

वह खुले हाथों भाग्य बाँट रहा है।

तुम्हें संपूर्ण भाग्य देने, वह स्वयं तुम्हारे द्वार पर आया है।

अब तुम सर्वशक्तिमान की छत्रछाया में हो।

तुम पर अब वृक्षपति की दशा बैठी है।

तुम तो पद्मा पद्म भाग्यशाली हो।

जहाँ भी तुम्हारे कदम पड़ेंगे,

वहाँ भाग्य के पद्म महक उठेंगे।

पहचानो स्वयं के भाग्य को।

अब तुम्हारी दृष्टि दूसरों के भी भाग्य के द्वार खोलेगी।

तुम्हारे बोल उनके भाग्य की रेखाएँ बदलेंगे।

तुम्हारे महान कर्म, दूसरों को श्रेष्ठ भाग्य बनाने की प्रेरणा देंगे।

उठो!

भाग्य बनाने की ये सुंदर बेला है।

इस संगमयुग पर तुम भगवान के साथ पार्ट बजा रहे हो।

तुम्हारा गाइड स्वयं परम सद्गुरु शिव भगवान है।

उसके मार्गदर्शन में तुम्हारा भविष्य अति उज्ज्वल है।

ओहो!

तुम तो स्वर्ग के भी मालिक बनने वाले हो।

सारे विश्व की बागडोर तुम्हारे हाथों में होगी।

संपूर्ण सुख और संपत्ति के तुम जन्म-जन्मांतर के अधिकारी होंगे।

हज़ारों वर्षों तक

तुम्हें तन, मन और धन का संपूर्ण सुख प्राप्त होगा।

तुम्हारे भंडार भरपूर रहेंगे।

तुम दाता बनकर जीवन व्यतीत करोगे।

अब तो तुम जैसी चाहो,

वैसी अपनी भाग्य की रेखाएँ खींच सकते हो।

भाग्य की कलम तुम्हारे हाथ में है।

तुम्हारे कर्म ही कलम बनकर भाग्य की रेखा खींचेंगे।

तन का सुख चाहिए?

तो अपने तन को श्रेष्ठ कर्मों और यज्ञ सेवा में स्वाहा कर दो।

मन का सुख चाहिए?

तो मन को श्रेष्ठ और शुभ विचारों से भर दो।

धन का सुख चाहिए?

तो धन को मनुष्य से देवता बनाने के कार्य में लगाओ।

संबंधों का सुख चाहिए?

तो सबको सुख दो।

फिर यदि कोई पूछे संसार में —

"सबसे ऊँचा भाग्यशाली कौन है?"

तो सबसे ऊँचा हाथ तुम्हारा ही उठेगा,

क्योंकि तुम्हें स्वयं भाग्यविधाता मिल गया है।

अगर कोई पूछे —

"सबसे अधिक धनवान कौन है?"

तब भी तुम गौरव से सिर ऊँचा करोगे,

क्योंकि तुम सर्वश्रेष्ठ ज्ञान धन के अधिकारी बन गए हो।

यदि कोई पूछे —

"सबसे सुखी कौन है?"

तो वह भी तुम ही हो,

क्योंकि तुमने भगवान को देखा है।

उसे देखकर तुम्हारे नयन तृप्त हो गए हैं।

तुमने ईश्वरीय सुख पाया है।

तुमने शिवबाबा की गोद ली है।

उसने अपने दिव्य कार्य में तुम्हें अपना साथी बनाया है।

उसने तुम्हें दिव्य अस्त्र प्रदान किए हैं,

तुममें शक्ति भरी है,

तुम्हें योग्य बनाया है,

अनेक विशेषताओं से सजाया है।

वाह! कितना श्रेष्ठ भाग्य है तुम्हारा।

ज़रा याद तो करो —

जीवन की इस यात्रा में कितनी बार शिवबाबा ने तुम्हारी मदद की है!

तुम्हें नया जीवन दिया है।

अब तो वह स्वयं तुम्हारा साथी बन गया है।

तुम्हारे सारे बोझ उसने स्वयं ले लिए हैं

और तुम्हारा हाथ पकड़ लिया है।

आहा!

जीवन यात्रा में ऐसे परम साथी को पाकर

तुम्हारी यात्रा कितनी सुखद हो गई।

उसने रहने के लिए तुम्हें विश्व में सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया,

खाने के लिए ब्रह्मा भोजन दिया,

महान आत्माओं का परिवार दिया,

पवित्र आत्माओं का संग दिया,

मनन करने के लिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञान दिया,

सभी चिंताओं से तुम्हें मुक्त कर दिया।

वाह तुम्हारा भाग्य, वाह!

ज़रा विचार तो करो —

भगवान रोज़ सुबह तुम्हें जगाने आता है।

उठते ही भगवान से तुम्हारा मिलन होता है।

वह तुम्हें वरदान देने तुम्हारे द्वार पर आता है।

तुम सोते भी उसी की पावन गोद में हो।

एक दिन आएगा,

जब सारा विश्व तुम्हारे भाग्य पर गर्व करेगा।

तुम जहाँ भी होगे, वहाँ सर्व कार्य सफल होंगे।

देखो!

शिवबाबा तुम्हारे लिए हथेली पर स्वर्ग लाया है।

तुम्हारा भटकना अब समाप्त हो गया है।

तुम्हारे मन को सच्चा चैन मिल गया है।

तुम्हें सच्चा सहारा मिल गया है।

तुम निश्चिंत हो गए हो।

उसने तुम्हारी संपूर्ण जिम्मेदारी ले ली है।

इससे बड़ा भाग्य क्या हो सकता है!

शिवबाबा के वरदानों में पलता हुआ तुम्हारा जीवन धन्य-धन्य हो गया है।

तुमने भगवान का हर चरित्र देखा है।

उसे सृष्टि पर अपने दिव्य कर्म करते देखा है।

जो कुछ तुमने देखा,

वो चारों युगों में किसी ने नहीं देखा।

अपने श्रेष्ठ भाग्य की स्मृति में रहो,

तो भाग्य का सूर्य तुम्हारे मस्तक पर चमक उठेगा।

भाग्यविधाता शिवबाबा के गुण गाओ,

उसके उपकार को याद करो,

तो तुम स्वयं भी मास्टर भाग्यविधाता बन जाओगे।

ॐ शांति।

यह ध्यान हमें हमारे असली सौभाग्य की याद दिलाता है – जहाँ खुद शिव बाबा गॉड (सुख के सागर ) हमारे साथ हैं, हमारी रक्षा करते हैं और हमारा भाग्य बनाते हैं। इस अनुभव से मन में गहरी निश्चिंतता और सच्चा सुख महसूस होता है। यह commentary हमें सिखाती है कि हमारे अच्छे कर्म ही हमारी और दूसरों की किस्मत बदल सकते हैं।

इस ध्यान के बाद आप अपने अंदर गर्व, संतुष्टि और खुशी से भर जाएंगे... ऐसा लगेगा जैसे भगवान ने खुद आपके जीवन को सुंदर बना दिया हो।

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