ॐ शांति।
मैं एक आत्मा हूँ।
मैं आत्मा शांतस्वरूप हूँ।
शांति मुझ आत्मा का निजी गुण है।
शांति मेरा असली स्वभाव है।
शांति मुझ आत्मा का स्वधर्म है।
शांति की शक्ति मुझ आत्मा में समाई हुई है।
मैं आत्मा, शांति के सागर शिवबाबा की संतान, शांत स्वरूप हूँ।
मेरा असली धाम पाँच तत्वों से परे शांतिधाम है, जहाँ सर्वत्र शांति ही शांति है, प्रकाश ही प्रकाश है।
मैं शांतस्वरूप आत्मा,
शांति के धाम में, शांति के सागर शिवबाबा के सम्मुख हूँ।
इस धाम में मैं आत्मा सर्व प्रकार के बंधनों से मुक्त हूँ, संकल्पों से भी मुक्त हूँ।
मैं आत्मा शांति की अधिकारी हूँ।
शांति मुझ आत्मा की सबसे महान शक्ति है।
मेरे चारों ओर शांति ही शांति है।
मीठे बाबा,
आपने मुझे शांति का अनमोल ख़ज़ाना देकर भरपूर कर दिया है।
आप ही मेरे जीवन के सच्चे सहारे हो, मेरे सच्चे मीत हो।
शांति की किरणें आपसे निकलकर मुझ आत्मा पर आ रही हैं।
आपसे अपार शांति मिल रही है।
आपके द्वारा सर्व ख़ज़ाने प्राप्त कर मैं संतुष्ट हूँ, तृप्त हूँ।
आपका सहारा पाकर मैं आत्मा निश्चिंत हूँ।
बाबा,
मैं आत्मा सर्व सांसारिक इच्छाओं से परे हूँ।
अब तो केवल आप ही मेरा संसार हो।
आहा... कितनी शांति है!
एक दिव्य शांति... परम शांति।
शांति का अनुभव कितना सुहावना है।
मैं आत्मा, शांति के सागर में समाई हुई हूँ।
अब शांति के प्रकंपन मुझ आत्मा से निकलकर चारों ओर फैल रहे हैं।
चारों ओर का वायुमंडल भी अब परिवर्तित होने लगा है।
शांति के प्रकंपन चारों ओर फैल रहे हैं।
इससे सहज ही सारे विश्व में शांति आ जाएगी।
और यह संसार स्वर्ग बन जाएगा।
ॐ शांति शांति शांति।











