ओम शांति,
सभी बैठ जाएंगे और हम सब 2 मिनट के लिए सीधा होकर बैठेंगे .. और अपने ध्यान को लेकर आएंगे भृकुटि के बीच जहां हम तिलक लगाते हैं! वहां पर देखिए,एक छोटा सा अति सूक्ष्म शक्तिशाली चमकता हुआ सितारा .. सभी देखेंगे इसको भृकुटि के बीच छोटा सा चमकता हुआ सितारा .. देखते रहना है.. और साथ-साथ संकल्प करेंगे .. जो सुनेंगे,उसको मन में दोहराएंगे!
मैं इस शरीर को चलाने वाली शक्ति दिव्या आत्मा हूं! कहिए अपने आप से मैं दिव्या आत्मा हूं! पवित्रता,शुद्धता,यह मेरा संस्कार है! इसको महसूस कीजिए ... सभी परिस्थितियों के बीच .. अनेक लोगों के व्यवहार और संस्कारों के बीच.. इस कलियुगी सृष्टि पर सतयुग लाने के लिए .. मैं आत्मा,शुद्ध पवित्र आत्मा,मैं दिव्य आत्मा हूं! सारे दिन में बातें बहुत आएगी .. लेकिन हर परिस्थिति का सामना करते हुए .. मुझ आत्मा को यह स्मृति रहे कि मेरा हर कर्म मेरे दिव्यता के संस्कार से होता है ! मेरा हर शब्द मेरी दिव्यता की ऊर्जा से निकलता है ! मेरे से निकलने वाली ऊर्जा सारे विश्व के अंदर पवित्रता की ऊर्जा फैल जाती है !
जैसे घर के कोने में एक छोटी सी अगरबत्ती है.. देखिए अपने आप को उस अगरबत्ती की तरह .. घर के कोने में एक छोटी सी अगरबत्ती की खुशबू पूरे घर में सुगंध ले आती है.. पूरे घर का शुद्धिकरण करती है! मैं दिव्य आत्मा इस सृष्टि पर.. सबके बीच रहते हुए .. वह पवित्रता की सुगंध .. वह दिव्यता की ऊर्जा.. चारों तरफ फैलाने वाली !
अपने मन की स्थिति से .. अपनी वाणी से .. और अपने हर कर्म से .. दिव्यता चारों तरफ फैलाने वाली .. मैं सतयुगी आत्मा हूं ! कहिए अपने आपसे मैं सतयुगी आत्मा हूं ! रहते मैं कलयुग में हूं .. मेरे संस्कार,स्वभाव, सतयुगी है ! मैं दिव्यात्मा,सतयुगी आत्मा हूं .. और आज के सारा दिन को देख ले .. हमें पता होगा आज हमें क्या-क्या करना है .. कहां-कहां जाना है .. किस-किस से मिलना है .. कौन-कौन सा काम करना है .. किस-किस का ध्यान रखना है ... हमें सब पता है कि आज क्या करना है .. लेकिन इस साल हम पक्का करेंगे कि करने का तरीका कैसा होगा .. जो करना है वह तो वही होगा .. जो निश्चित किया था लेकिन करने का तरीका साधारण नहीं !
दिव्यता के आधार से .. मेरी हर सोच .. बोल .. व्यवहार .. पवित्र स्वच्छ दिव्य है ! मैं सतयुगी आत्मा हूं !
ॐ शांति










