ओम शांति ! अपने भागते हुए मन को समेटते हुए.. धीरे-धीरे.. गहरी सांस के साथ उसे शांत करते हुए.. अपने सत्य का अनुभव करें.. यह दिल जो धड़क रहा है.. यह आंखें जो देख रही है.. यह चेहरा जिसे देखकर दूसरे मुझे पहचानते हैं.. यह हाथ, पांव जो सारा दिन कर्म करते हैं.. और यह पूरा शरीर ही.. जो मेरी पहचान बन चुका है.. क्या यह हमेशा से ऐसा ही था? और क्या यह हमेशा ऐसे ही रहेगा? अंतर आत्मा से यह जवाब आ रहा है.. कि यह सब कुछ टेंपरेरी है.. जब तक है.. तब तक बहुत अच्छा.. लेकिन ना तो यह हमेशा से था.. और ना हमेशा रहेगा.. इस संसार में जिन-जिन को भी इन आंखों से देख रहे हैं.. यह सब बदलने वाले हैं.. जैसे हर वस्तु कभी तो बनाई गई होगी.. और कभी पुरानी होकर अपनी वैल्यू खो बैठेगी.. फिर उसकी जगह नई बनाई जाएगी.. ऐसे ही यह शरीर भी कभी तो बना.. और कभी इसे बदलना भी होगा.. मैं इन दोनों ही परिस्थितियों को.. शांत पूर्वक देख रही हूं.. यह दोनों ही प्रकृति के क्रम के अनुसार अटल है..
लेकिन एक और अटल सत्य है जो है इस शरीर को चलाने वाली आत्मा.. अजर अमर अविनाशी.. जो सदा थी... अभी भी है.. और सदा रहेगी.. आज एक शरीर में.. कल दूसरे में.. जिनसे हमारा रिश्ता है... जो हमारे अपने हैं.. वह शरीर नहीं.. यही शक्ति है.. क्योंकि मैं खुद भी यह शरीर नहीं... मैं भी अजर अमर आत्मा हूं... इसलिए मेरा रिश्ता भी शरीरों से नहीं आत्मा से है.. जो भी मेरे मित्र... संबंधी जिन्हें मैं अपना कहती हूं.. वह सब वास्तव में.. कभी ना मिटने वाली आत्मा है... शरीर तो जब से जन्म लेता है.. तब से बदलता रहता है.. कभी छोटा.. कभी बड़ा.. कभी बीमार.. कभी बुजुर्ग... तो कभी शक्तिहीन प्रकृति के नियम को तो नहीं बदल सकते.. लेकिन उस शरीर में रहने वाली आत्मा की.. शक्ति को पहचान कर.. उसे बढ़ा सकते हैं। मैं अपने अस्तित्व को पहचानती जा रही हूं.. जो भगवान की संतान.. कभी ना मिटने वाली आत्मा हूं.. मैं सदा थी.. सदा हूं... इस सत्य को पहचान कर मैं खुद में भी शक्ति भर रही हूं.. और दूसरी आत्माओं को भी... इस सत्य को जानने की.. पहचानने की शक्ति दे रही हूं..!
ओम शांति !
















